Thursday, 6 September 2018

पूछे विक्रम, बोले बेताल - 09



9. क्या यही है स्त्री-मुक्ति का तात्पर्य?

अफ़लातून

विक्रम और बेताल का आकाश-भ्रमण जारी था. सोच में डूबा विक्रम उन महिलाओं को भुला नहीं पा रहा था जो जानवरों से प्रेम करते हुए अपनी संतान का तिरस्कार कर रही थीं. विक्रम की ऐसी अवस्था को देखकर बेताल ने पूछ ही लिया, “तो, इन देवियों ने तुम्हारे दिल पर गहरी छाप छोड़ ही दी, राजा!”

“हाँ! भई, बेताल, मैं उनके ऐसे आचरण को समझने में असमर्थ हूँ. कौन हैं ये महिलाएँ? क्या भारतवर्ष की सभी महिलाओं का आचरण ऐसा ही है, या फिर ये किसी विशेष कोटि की विभूतियाँ हैं?”

“ठीक कहा, विक्रम! ये देवियाँ हैं महिला-मुक्ति की समर्थक...तुम इतनी जल्दी समझ नहीं पाओगे, राजा जी! संक्षेप में समझने के लिए कहानी सुनो विदुषी चन्द्रलेखा की:

चंद्रलेखा का ब्याह उसके माता-पिता ने बचपन में ही कर दिया था. सयानी होकर जब वह पति के घर आई, तो उसके अत्यंत साधारण रूप-रंग एवम् गुस्सैल स्वभाव के कारण पति ने उसे घर से निकाल दिया. चन्द्रलेखा ने माता-पिता पर बोझ बनने की अपेक्षा अपने पैरों पर खड़ा रहना उचित समझा और वह शिक्षा प्राप्त करने के लिए अपने गाँव को छोड़कर सौभाग्यपुर चल पड़ी. अध्ययन तो वह भली-भाँति करती रही, मगर अपने साधारण रूप एवम् परित्यक्ता के जीवन के कारण उसके हृदय में एक हीन भावना पनप रही थी. उससे किसी विवाहिता स्त्री का सुख देखा न जाता, साथ ही वह पुरुषों को लुभाने की चेष्टा करके यह सिद्ध करने का प्रयत्न भी करती कि वह आकर्षक है! चंद्रलेखा ने अपने मोहपाश में बांध लिया एक विवाहित पुरुष इन्द्रसेन को. गुरुकुल के, जहाँ वह अध्ययन करती थी, सभी नियमों का उल्लंघन करके वह इन्द्रसेन के साथ रंगरेलियाँ मनाने लगी. इन्द्रसेन के कुछ मित्रों ने इसकी सूचना उसकी पत्नी को दे दी. पत्नी सौदामिनी की भाँति आई, मगर न जाने कैसे, चन्द्रलेखा को उसके आगमन का ज्ञान हो गया था. वह कुछ समय के लिए अज्ञातवास में चली गई. इधर इन्द्रसेन ने भी अपनी अर्धांगिनी को समझा- बुझा कर वापस भेज दिया. अब तो चन्द्रलेखा विचारमग्न हो गई. उसने हर संभव उपाय से इन्द्रसेन को अपने मोहपाश में जकड़े रखने के उद्देश्य से यह निश्चय किया कि क्यों न इन्द्रसेन से संतान की प्राप्ति की जाए! ऐसा ही किया भी उसने! जब प्रसवकाल निकट आया तो विदुषियोंने चन्द्रलेखा से पूछ लिया कि उसका कोई पति है अथवा नहीं. यह जानकर कि चन्द्रलेखा बिन-ब्याही माँ बनने वाली है, वे बड़ी प्रसन्न हुईं!”

विक्रम से रहा न गया. वैसे ही चन्द्रलेखा की कहानी उसे क्षुब्ध किए जा रही थी. उसके मुख से निकल पड़ा “राम! राम!”

बेताल ने उसे रोका, “अमाँ, विक्रम, बीच में मत बोलो! पूरी कहानी तो सुन लो!”

विक्रम बोला, “कहते रहो!”

बेताल ने आगे कहना शुरू किया.

“चंद्रलेखा को कन्या-रत्न की प्राप्ति होने से कुछ ही पूर्व इन्द्रसेन अपने गाँव चला गया और फिर कभी लौटकर नहीं आया. चन्द्रलेखा ने भी उसे वापस बुलाने की चेष्टा नहीं की. मगर अब अपनी बेटी की ख़ातिर उसने एक विद्यालय में अध्यापन कार्य आरंभ कर दिया. सौभाग्यपुर का अध्ययन भी अभी अधूरा था.”

“ठीक ही तो है, रंगरेलियाँ मनाती रही तो पढ़ाई कैसे पूरी होती?”

“तुम फिर बोले!”

“अच्छा, कहो, आगे कहो!”

“कुछ मास बीतने के पश्चात् चन्द्रलेखा वापस सौभाग्यपुर आई. अपनी सखी को उसने बताया कि अकेले रहकर बेटी का पालन-पोषण करना वास्तव में कठिन है. यदि वह कभी बीमार हो जाए तो वैद्यजी को बुलाने के लिए भी घर में कोई नहीं है. उसे किसी पुरुष के सहारे की आवश्यकता है.”
सखी चौंक पड़ी, “पुरुष का सहारा? तुम्हें, चन्द्रलेखा? फिर स्त्री-मुक्ति का क्या होगा?”

“वह तो रहेगी ही. मैं कोई ब्याह करके पुरुष के आधीन थोड़े ही रहूँगी. वह तो बस, कामकाज में सहायता के लिए किसी के पास रह लूँगी.”

इतना कहकर बेताल कुछ रुका. मगर विक्रम ने अधीरता से कहा, “आगे क्या हुआ?”

“फिर चन्द्रलेखा ने एक और ब्याह रचाया. उसे इस बार एक पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई. मगर, चूँकि वह स्वभाव से ही उन्मुक्त थी सो यह ब्याह भी टिक नहीं पाया. अब वह अपनी दोनों संतानों के साथ रहती है और एक गुरुकुल में पढ़ाती है.

सौभाग्यपुर का अध्ययन अभी भी पूरा नहीं कर पाई है. अब भी शायद वृद्धावस्था में सुरक्षा की दृष्टि से और अपनी संतानों के भविष्य की ख़ातिर वह, शायद, एक-दो झूठे-झूठे ब्याह और रचा ले! मगर वह रहेगी मुक्त ही!”

इतना कहकर बेताल ने पूछा, “तो राजा जी, अब समझे स्त्री-मुक्ति का तात्पर्य?”

“हाँ, बेताल, भली-भाँति समझ गया. जब तक ब्याह नहीं होता, स्त्री पुरुष को लुभाए, उसे आनन्द दे, या उसका उपभोग करे, वह उसे प्रिय ही होगा. वांछित होगा. मगर जैसे ही विवाह हो जाए, वह उसी पुरुष-पति को त्यागकर फिर से स्वच्छन्द बन जाएगी, तितली की भाँति. मैं समझता हूँ कि स्त्री-मुक्ति से तात्पर्य पुरुष से मुक्ति न होकर पति से मुक्त होना है.

पति का द्वेष करना, उसे सताना, उसे छोड़ देना, उसका सदा विरोध करना यही लक्षण हैं स्त्री-मुक्ति के! क्यों बेताल, मैं ठीक समझा न?

“पता नहीं, विक्रम...” बेताल ने उत्तर दिया और वे आगे चल पड़े.

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पूछे विक्रम, बोले बेताल - 12

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