अस्ताचल साम्राज्य
अफ़लातून
“बेताल, तुमने बताया, कि
अधिकांश भारतीय युवक नौकरी करने के लिए कुबेरपुर जाते हैं, या फिर अस्ताचल साम्राज्य. कुबेरपुर के बारे में तो
तुमने मुझे बताया था,
अब कुछ बात अस्ताचल
साम्राज्य की भी हो जाए.”
“ज़रूर
होगी, राजाजी! सात समुन्दर पार एक नदी के किनारे पर बसी है
अस्ताचल साम्राज्य की राजधानी. एक ज़माना था, जब
अस्ताचल साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त ही नहीं होता था.”
“मतलब?” राजा विक्रम ने विस्मय से पूछा.
“मतलब
यह कि अस्ताचल साम्राज्य के आधीन पूर्व-पश्चिम दिशाओं के इतने देश थे कि सूर्य
देवता की प्रदक्षिणा करती वसुंधरा का जो भी पार्श्व सूर्य देवता का नमन करता, वहीं अस्ताचल साम्राज्य का अधीनस्थ देश होता.”
“अब
क्या स्थिति है?”
विक्रम ने फिर पूछा.
इस
बार बेताल ने गंभीरतापूर्वक कहा,
“सुनो, विक्रम,
तुम्हें यह बात
भली-भांति मालूम है कि समय-चक्र घूमता ही रहता है, अर्थात्
समय कभी एक-सा रह ही नहीं सकता. जिस स्थान पर दिन निकलता है, वहीं रात को भी आना ही है, और रात
ख़त्म होते ही दिन भी अवश्य निकलेगा. तो अस्ताचल साम्राज्य में समझ लो कि सूर्यास्त
हो चुका है. उसके अधीनस्थ सभी देश धीरे-धीरे स्वतंत्र हो गए और अब अस्ताचल पुराने, ध्वस्त खंडहर की भाँति खड़ा है.”
“भारत
पर भी क्या अस्ताचल साम्राज्य ने अधिकार किया था?”
“हाँ, दुर्भाग्यवश, ऐसा
ही हुआ था. वे आये थे व्यापार करने,
मगर अपनी धूर्तता से
स्वामी बन बैठे. उस समय भारत में व्याप्त फूट का भी इसमें बड़ा योगदान था.
भारतवासियों को उन्होंने खूब सताया था. यहाँ की धन-दौलत अपने साथ ले गए. अंत में
अनेक वर्षों के लम्बे संघर्ष के पश्चात् भारत ने स्वाधीनता प्राप्त कर ली.”
“अस्ताचल
साम्राज्य का सम्राट कौन है?”
“इस
समय वहाँ महारानी है. सम्राट नहीं हैं. महारानी के पति सम्राट न होते हुए भी
राजकाज में काफ़ी दखल देते हैं. अनेक समारोहों में जाते हैं और जो भी मन में आये, कह देते हैं. लोगों का उपहास करना उन्हें बहुत अच्छा
लगता है. अस्ताचल साम्राज्य की तुलना में अन्य देशों को हीन समझना उनकी आदत है.”
“कोई
उदाहरण?”
“हाँ, हाँ! अभी कुछ ही दिन पूर्व वे एक प्रदर्शनी देखने गए.
ज़ाहिर है, प्रदर्शन की सभी वस्तुएँ उनकी ही प्रजा ने बनाई थीं. एक
स्थान पर किसी गुड़िया की पोषाक के धागे लटकते दिखाई दिए, तो महारानी के पतिदेव ने कहा : “यह शायद ***देश से
बनकर आई है!” और हँसने लगे. जब ***के नागरिकों तक यह बात पहुँची तो वे बड़े नाराज़
हुए और महारानी के पतिदेव का विरोध करने लगे. अब तो पतिदेव सकपका गए. उनके पास कोई
ताकत या अधिकार तो थे नहीं,
वे तो बस महारानी के
आभामंडल में ही जुगनू की भाँति विचरते रहते थे. अतः उन्होंने क्षमायाचना करने में
ही अपनी भलाई समझी और यह कहकर बात रफ़ा-दफ़ा कर दी कि वे तो बस मज़ाक कर रहे थे.”
“अब
कहो, राजा,
मिल गया न प्रमाण?”
“हाँ, प्रमाण भी मिल गया और साथ ही यह भी पता चल गया कि
अस्ताचल साम्राज्य में कार्य कर रहे विदेशी नागरिकों पर क्या गुज़रती होगी. जहाँ
शासनाधिपति ही उन्हें फूहड़,
उपहास का पात्र समझे, वहाँ आम व्यक्ति उनके साथ कैसा व्यवहार करता होगा? कभी-कभी तो मैं सोच में पड़ जाता हूँ कि ***देश के
नागरिकों से वहाँ कार्य भी किस प्रकार का लिया जाता होगा...”
“विदेशी
नागरिक कोई भी कार्य कर लेते हैं: वे राजमार्गों को बुहारते हैं, होटलों में बर्तन साफ़ करते हैं, धोबी का,
दर्जी का, सेवक का,
शिशु-संगोपन का...कोई भी
कार्य कर लेते हैं. हाँ,
बुद्धिमान व्यक्तियों की
योग्यता का भी यहाँ दोहन किया जाता है,
मगर फिर भी रंग भेद, वर्ण भेद के कारण उन्हें अनेक बार अपमानास्पद हादसों
से दो-दो हाथ भी करना पड़ता है.”
“हे
भगवान! यदि जन्मभूमि में ही रहकर ये महानुभाव अपने परिश्रम, कौशल और ज्ञान की आहुति देते, तो वह निश्चय ही स्वर्ग समान हो जाती. अच्छा यह बताओ कि
अस्ताचल महारानी की कितनी संतानें हैं?
पुत्र-पौत्र इत्यादि कैसे
हैं, क्या करते हैं?”
“राजा, तुम तो सभी कुछ जानना चाहते हो, मगर मैं सब कुछ नहीं बताऊँगा, कुछ ख़ास-ख़ास बातें ही बताऊँगा. सारे भेद खोलना तो मेरी
फ़ितरत ही नहीं है.”
“अच्छा
भाई, जैसा चाहो,
जितना चाहो, उतना ही बताना.”
“महारानी
के बड़े पुत्र,
जो भावी सम्राट हैं, उनकी दो शादियाँ हुई हैं. उनकी पहली पत्नी आखेटिका एक दुर्घटना
में चल बसीं.”
“दुर्घटना
में? कहाँ,
कब, कैसे?”
“राजा
जी, तुम भी बड़े चतुर हो, पूरी बात
जानकर ही दम लोगे! तो सुनो,
राजकुमारी आखेटिका अनुपम
सुन्दरी थी, प्रजा के प्रति, दीन-द्खियों
के प्रति प्रेम उसके दिल में उमड़ा पड़ता था. आखेटिका राजघराने से नहीं थी, परंतु जब भावी सम्राट ने उससे विवाह करने में रुचि दिखाई, तो आखेटिका के पिता को सामन्त का ऊँचा ओहदा देकर भावी सम्राट
के साथ उसका विवाह कर दिया गया. आँखों में सतरंगी सपने सजोये आखेटिका ने राजमहल में
प्रवेश किया,
मगर शीघ्र ही उसने पाया कि
पति का किसी अन्य विवाहित महिला से संबंध है. दिल टूट गया आखेटिका का. दो राजकुमारों
को जन्म देने के बाद उसने उनका लालन-पालन किया और जब वे कुछ बड़े हुए तो उसने समाज कल्याण
के कार्यों में रुचि लेना आरंभ कर दिया. राजमाता को पुत्रवधू का इस तरह घूमना-फिरना, आम लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं था. उन्होंने उसके साथ
अच्छा व्यवहार नहीं किया. राजपुत्रों के समझदार होते ही, जब आखेटिका ने महसूस किया कि उसके पति विवाह-बाह्य संबंध
को नहीं छोड़ेंगे,
तो उसने पृथक रहने का निश्चय
कर लिया. कुछ समय पश्चात् विवाह-विच्छेद भी हो गया.”
“क्या
भावी सम्राट ने अपनी प्रेमिका से विवाह किया?”
“नहीं, विक्रम उस राजघराने में उस समय इसकी अनुमति नहीं थी, उन्हें काफ़ी सालों तक रुकना पड़ा...अनेक उलझनों भरे हैं
वहाँ के रीति-रिवाज.”
“आखेटिका
का फिर क्या हुआ?”
विक्रम की उत्सुकता बढ़ती
जा रही थी.
“आखेटिका
की त्रासदी ये थी,
कि वह बड़ी भावुक थी, उन्मुक्त थी. पति से संबंध-विच्छेद होने के बाद उसने कहीं
सहारा ढूँढ़ना चाहा. एक जगह आशा की किरण भी दिखाई दी और उसने एक विदेशी, परधर्मी युवक से विवाह करने का निर्णय ले लिया. सम्राज्ञी
राजमाता बड़ी अप्रसन्न थीं. राजप्रासाद में प्रति सप्ताह होने वाले प्रार्थना समारोह
के पश्चात् प्रभु से सभी सदस्यों के लिए आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है. उस सप्ताह
राजघराने के सदस्यों की सूची में से आखेटिका का नाम निकाल दिया गया.
कुछ
ही सप्ताह बाद किसी अन्य देश में अपने भावी पति के साथ यात्रा कर रही आखेटिका का वाहन
दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उसकी इहलीला समाप्त हो गई.”
“हे
ईश्वर! राजमाता को ऐसा न करना चाहिए था...” राजा के मुख से निकला.
“कहीं
तुम यह तो नहीं कहना चाहते हो,
कि आखेटिका की मृत्यु में
राजमाता का हाथ था?”
“मुझे
संदेह है. मगर एक बात मेरे मन में रह-रहकर आ रही है, कि इतनी
भली महिला को यूँ सताना अच्छा नहीं है. राजघराना अगर अपनी पुत्रवधू के साथ इस प्रकार
का व्यवहार करता है,
तो अस्ताचल से सभी अच्छाइयों
के अस्त होने में देर नहीं लगेगी. तुम्हारा क्या ख़याल है, बेताल?”
“मालूम
नहीं...”
*****