Friday, 20 July 2018

पूछे विक्रम, बोले बेताल - 01



कुबेरपुर का राजा

अफ़लातून

बात पुरानी है. कितनी पुरानी कहना कठिन है. उसका ज़िक्र करते हुए “एक समय की बात है...” से ही शुरू करना पड़ता है.

तो, एक समय की बात है कि उज्जयिनी नगर में राजा विक्रम राज्य किया करते थे. (यह तो आपको मालूम ही है!) राजा विक्रम ने किसी तपस्वी को किसी पेड़ से लटकता हुआ मृत शरीर लाकर देने का वादा किया था. उस शरीर में बेताल का वास था. हर बार राजा विक्रम उस शरीर को अपने कंधे पर डालकर तपस्वी की ओर चल पड़ते. बेताल उन्हें अपनी कहानी सुनाता और कहानी से संबंधित प्रश्न पूछता – साथ ही धमकी भी देता कि यदि जानते हुए भी राजा ने उन प्रश्नों के उत्तर नहीं दिये तो उसके सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंग़े. बेचारा राजा जैसे ही उत्तर देता, बेताल मृत शरीर समेत दुबारा पेड़ से लटक जाता. इस तरह कई रातों तक चलता रहा...जब तक कि बेताल पचीसीख़त्म न हो गई.

तो फिर? यह बात इस समय कहने का क्या प्रयोजन?

हुआ यूँ कि कहानियों का राजा विक्रम कब परलोक सिधारा, यह तो हमें ज्ञात नहीं, शायद वह अमर था, मगर बूढ़ा तो उसको होना ही था, क्योंकि वह अपने बचपन में ज़रूर बच्चा ही रहा होगा न! मगर बेताल महाशय तो अलौकिक शक्तियों के स्वामी थे (जैसे कि किसी भी शरीर में प्रवेश कर जाना, कहीं भी चले जाना, कुछ भी कर बैठनायाने कि वह त्रिकालदर्शी, त्रिभुवन संचारी थे, ऐसा मान सकते हैं!)

तो, वृद्धावस्था को प्राप्त हुए राजा विक्रम एक दिन जंगल में घूम रहे थे (पुरानी आदत गई नहीं थी), अचानक कहीं से खिलखिलाकर हँसने की आवाज़ आई. ऊपर देखा तो नज़र आया बेताल! दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया. तपाक से मिले. बेताल बोला:
“भई, राजा जी, पुराने दिन बड़े याद आते हैं, वो तुम्हारी पीठ पर सवार होना, किस्से-कहानियों में रातों का कट जाना, बार-बार तुम्हारे हाथों से फिसल कर पेड़ पर लटक जाना...हो जाये, दुबारा!”

“अरे भई, बेताल, अब मुझ में वह बात कहाँ! बूढ़ा हो गया हूँ! अपना ही बोझ नहीं संभलता, तुम्हें कहाँ से उठा पाऊँगा...”

“ओह...” बेताल बोला. “ख़ैर चलो, बैठे-बैठे ही बतियायेँगे! रातें आराम से कट जाएँगी!”

“ना! ना! रातों को जागने का तो अब सवाल ही नहीं! दिन में भी लेटे रहने का मन करता है! नज़र भी कमज़ोर पड़ गई है, तुम्हें ही मुश्किल से पहचान पाया.”

तो तुम अब वोनहीं रहे! ख़ैर, माँ कसम, पुरानी दोस्ती का वादा, मैं तुम्हें दुनिया दिखाऊँगा!
अख़बार तो तुम पढ़ते नहीं होगे, टी.वी.भी नहीं देख पाते होगे, मैं तुम्हें सुनाऊँगा, कि दुनिया में कहाँ क्या हो रहा है, कहीं कोई शक हो तो सवाल पूछते रहना, जवाब भी मैं ही दूँगा.”

“यह ठीक है! सच, दोस्त, मुझे बहुत अकेलापन महसूस हो रहा है आजकल! ज़माने से कब का पिछड़ गया हूँ, कई बातें पल्ले नहीं पड़ती मेरे, तुम्हारा बहुत एहसानमन्द रहूँगा, अगर तुम सीधे-साधे शब्दों में दुनिया के हालचाल सुनाते रहो!”

“तो सुनो:
पृथ्वी पर कुबेरपुर नामक एक अति सम्पन्न नगर है, अति आधुनिक भी है यह कुबेरपुर. वहाँ के निवासी गोरे चिट्टे; मौज मस्ती में समय बिताते, दिल बहलाव के लिए किसी पर भी गोली चला देते. तमंचे वाला खेल वहाँ बहुत लोकप्रिय है. बच्चे बड़ों पर, बड़े बड़ों पर, बच्चे बच्चों पर, अपने परायों पर कभी भी, यूँ ही तमंचा चला बैठते हैं. उनके तमंचे भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं, उनसे छोड़ी जाने वाली गोलियाँ भी अलग-अलग किस्म की होती हैं. कभी उन्हें पिस्तौल कहते हैं, कभी मिसाइल, कभी प्रक्षेपास्त्र.

तो, इस कुबेरपुर का राजा बड़ा बांका जवान था, सुदर्शन, स्वभाव से रसिया! राजा होने के कारण हर चीज़, ज़ाहिर है, उसी की थी. तो, इस राजा का दिल आ गया एक बाला पर! वह समझी – रानी बनूँगी. मगर राजा भी था महाचतुर! ऐसी कितनी ही बालाओं से रास रचा चुका था. ऊपर से, महारानी के भय से वह विवाह भी भला कितनी बालाओं से करता! मगर वह बाला भी थी बलाकी साहसी! उसने अपनी सखियों की मार्फ़त, मित्रों की मार्फ़त पूरे कुबेरपुर में राजाजी से अपने संबंधों की बात ज़ाहिर कर दी. राजा को बड़ी शर्म आई. उसने सोचा, सारी प्रजा मेरा मुँह देखेगी, जो अब दिखाने लायक नहीं रहा! क्यों न मैं प्रजा का ही मुँह फेर दूँ? उसने दूर जाकर अपने सैनिकों समेत कंठाल देश पर बम बरसाने शुरू कर दिए.”

“रुको, यह कंठाल देश कहाँ है?” विक्रम ने पूछ लिया.

“वहीं, जहाँ बहुत सारे ऊँट पाये जाते हैं,” बेताल ने उत्तर देते हुए आगे कहा, “मगर कंठाल देश का राजा भी बड़ा पराक्रमी निकला, वह भी मुँहतोड़ जवाब देता रहा कुबेरपुर का...”

“फिर, कितने समय तक यह युद्ध चला?”

“वह तो बस चल ही रहा है, शायद चलता ही रहेगा, क्योंकि कुबेरपुर ने एक साथ ही कुछ अन्य देशों पर भी आक्रमण कर दिया है न!”

“कारण?”

“पूरी दुनिया पर अपनी हुकूमत चलाना चाहता है, अपनी हथियारों की मंडी में मंदी नहीं आने देना चाहता, निरंतर हथियारों का निर्माण करता जाता है और उन्हें निर्दोष, निरपराध राज्यों पर यूँ ही बरसाता जाता है.”

“यह तो बहुत बुरी बात है! आख़िर इसे रोका कैसे जा सकता है?”

“यही तो फ़िलहाल मालूम नहीं, मगर मुझे पूरा विश्वास है, कि वह एक दिन पछतायेगा, पराजित, लाचार, दुनिया की अदालत में दोषी के कटघरे में खड़ा होगा और दया की याचना करेगा.”
“क्या उसे दया की भीख मिलेगी?”

“मालूम नहीं...”

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