Wednesday, 5 September 2018

पूछे विक्रम, बोले बेताल - 08






8. क्या जानवर बच्चों से बेहतर हैं?


‌‌‌‌‌‌‌-- अफ़लातून

उस दिन जब राजा विक्रम नियत स्थल पर पहुँचा तो बेताल को वहाँ न पाकर कुछ सुस्ताने लगा. कुछ ही क्षणों में चिर-परिचित हँसी की आवाज़ सुनाई दी. विक्रम ने कहा, “बड़ी देर लगा दी मित्र! क्या कहीं घूमने गए थे?”

बेताल बोला, “हाँ, और अब तुम्हें ले जाने आया हूँ. अकेले घूमने में मज़ा नहीं आ रहा था.”

“मगर मैं...” विक्रम ने कहना चाहा मगर बेताल उसे टोकते हुए बोला, “चिंता न करो, राजा जी, मैं तुम्हारे शरीर में प्रविष्ट हो जाता हूँ, आकाश मार्ग से चले चलेंगे, जहाँ रुकना चाहो, बता देना, मैं तुमसे बातें करने लगूँगा.”

दोनों चल पड़े. नीचे पृथ्वी पर नज़रें जमाए वे आकाश मार्ग से चले जा रहे थे. अचानक विक्रम ने कुछ शोकग्रस्त महिलाओं को देखा. उनमें से एक विदुषी के मुख पर शोक की गहरी छाया थी.

राजा ने अनुमान लगाया कि उसके साथ कोई दुर्घटना हुई है. दुखियारों का सहारा विक्रम विचलित हो उठा. राजा के दिल का हाल समझकर बेताल रुक गया. दोनों उन महिलाओं के वार्तालाप को सुनने लगे.

इतने में सामने से एक भद्र पुरुष उन महिलाओं के निकट आए तो विदुषी अपने आँसुओं को रोकते हुए बोली, “छोटा चल बसा!”

भद्र पुरुष ने आसमान की ओर हाथ उठाते हुए छोटेकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की.

राजा अपनी उत्सुकता को रोक न सका. पूछने लगा बेताल से, “क्या छोटा रोगग्रस्त था?”

बेताल ने जवाब दिया, “हाँ, लगभग तीन सप्ताह से बीमार था.”

“ईश्वर उसकी आत्मा को शांति दे! इन देवीजी की कितनी संतानें हैं?”

“बस एक ही पुत्र है, विद्वान, आज्ञाकारी और स्वस्थ्य भी है.”

“फिर, ये तो छोटेकी बात कर रही थीं?”

“तुम समझे कि छोटाइनका बेटा था? देखो राजा जी, आजकल माँ-बाप बच्चों से उतना प्यार नहीं करते, जितना पालतू जानवरों से करते हैं.”

“याने...?”

“हाँ, ‘छोटेसे उनका तात्पर्य था उस नन्ही सी कट्टो गिलहरी से जिसे उन्होंने अपने घर में पाल रखा था.”

“गिलहरी के निधन पर इतना दुख!”

“देख लो!”

आगे चले तो एक महिला को बाल बिखेरे, सिर झुकाए, हाथ बाँधे आँसू बहाते देखकर रुक गए. महिला खड़ी थी एक समाधि के सामने.

विक्रम बोला, “शायद किसी निकटतम व्यक्ति की समाधि है.”

“हा, हा, हा, खा गए न धोखा विक्रम भाई! यह समाधि है इन देवीजी के श्वान की!”

“घर में और कौन-कौन है?”

“अपना कहने को बस वही श्वान था, वह भी बूढ़ा होकर मर गया.”

विक्रम ने सोचते हुए कहा, “शायद अब भारतीय महिलाओं के मन में प्रेम का सागर हिलोरें ले रहा है. जब वे अपने पालतू प्राणियों से इतना स्नेह करती हैं, तो अपने घर के सदस्यों से कितना प्रेम करती होंगी!”

बेताल बोला, “राजा जी, इतनी जल्दी किसी निष्कर्ष पर न पहुँचना. एक-दो नज़ारे और देख लेते हैं. तुमने मृत प्राणियों के प्रति उनकी भावनाओं को तो देख लिया, अब जीवित प्राणियों के साथ उनका व्यवहार भी देख लो.”

विक्रम ने कहा, “चलो!”

उन्हें अधिक दूर नहीं जाना पड़ा. निकट ही एक जमघट देखा...कुछ पिंजरे, पिंजरों में मर्कट...एक इमारत से पिंजरों को बाहर धकेलते हुए कुछ व्यक्ति, उनको निर्देश देती एक महिला.

विक्रम ने देखा बेताल की ओर! बेताल ने बताना शुरू किया, “यह एक प्रयोगशाला का भवन है. यहाँ विभिन्न रोगों से जूझने की औषधियाँ बनाई जाती हैं. उनके प्रयोग पहले किए जाते हैं वानरों पर, चूहों पर, श्वानों पर, और तभी मनुष्यों को ये औषधियाँ दी जाती हैं.”

“तो फिर, समस्या कया है?” विक्रम ने पूछ लिया.

इन महिलाओं का कहना है, कि जिन पशुओं पर प्रयोग किए जा रहे हैं, उनकी देखभाल भली-भाँति नहीं की जा रही है. उनके रहने के पिंजरे छोटे-छोटे हैं, उन्हें समुचित सुविधाएँ प्रदान नहीं की जा रही हैं. अतः यह महिला सभी जानवरों को दूर जंगल में ले जाकर छोड़ने का आदेश दे रही है. कहो, क्या कहते हो?”

विक्रम ने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला ही था कि उसकी आँखों के सामने एक किशोर का चेहरा तैर गया. बालक अकेला, उदास, रसोईघर में खड़ा खाना बना रहा था. राजा को आश्चर्य हुआ, नन्हा-सा बालक, अकेला, खाना किसके लिए बना रहा है?

कुछ ध्यान से देखा तो पाया कि बालक के पिता मुँह में सिगरेट दबाए तैश में किसी से झगड़ रहे थे, माँ, सजी-सँवरी, चमकती-दमकती-इठलाती कुछ लिख रही थी.

बेताल हाज़िर था इस सबका मतलब समझाने के लिए, “राजा जी, इस बालक की माँ बड़ी अफ़सर है, पिता को झगड़ा करने से फुर्सत नहीं, बालक अपने बचपन को भुलाकर सभी के लिए कुछ खाना बना रहा है. यदि खाने के समय तक कुछ बन न पाया तो उसे मार पड़ेगी पिता से, और गालियाँ सुनेगा महिमा-मंडित माँ से! पढ़ाई-लिखाई भी करनी पड़ती है, माँ की इज़्ज़त का सवाल जो है!”

विक्रम गहरी सोच में डूब गया. बेताल ने ही चुप्पी को तोड़ा, “अब बोलो, राजा विक्रम, तुम इन महिलाओं के प्रेमपूर्ण व्यवहार की तारीफ़ कर रहे थे. अब कहो, मैं सुनूँगा.”

“क्या कहूँ, बेताल! जानवरों को सुख-सुविधा देने वाली, उनकी मृत्यु पर शोक-विह्वल होने वाली ये महिलाएँ अपनी ही संतान के प्रति इतनी निष्ठुर कैसे हो सकती हैं?”

“निष्ठुर होती हैं, यह तो तुमने देख लिया. शायद यह पशु-प्रेम प्रसिद्धि पाने के लिए ही है. वरना अपने पुत्र को कौन सी माँ दुख देगी?”

“रुको, बेताल, कहीं वह उसका सौतेला बेटा तो नहीं?”

“नहीं, राजा, बिल्कुल सगा है वह बेटा. मैं तो सोचता हूँ, कि उस महिला को शादी-ब्याह का बंधन रास नहीं आया. बच्चा शायद उसके पैरों की जंज़ीर बन गया है!”

“हो सकता है, मगर मैंने तो ऐसी बात अपने राज्य में कभी देखी-सुनी नहीं. इस नगर को देखकर तो यूँ प्रतीत होता है कि वानरों-श्वानों-मूषकों का जीवन मानव-जीवन की अपेक्षा अधिक सुखकर है. कहीं यह बालक भी यही तो नहीं सोच रहा है, कि काश मैं भी वानर होता या श्वान होता, तब तो माँ के स्नेह की छाया मुझे मिलती?”

“मालूम नहीं...” बेताल का जवाब था.

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पूछे विक्रम, बोले बेताल - 12

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