जिओ हज़ारों साल
अफ़लातून
विक्रम और बेताल आकाश
मार्ग से सैर कर रहे थे. अचानक एक जगह उत्सुकतावश विक्रम ने कुछ रुककर देखा. एक
भद्रपुरुष की तस्वीर पर फूलमाला चढ़ाई जा रही थी, दीप
प्रज्वलित किया जा रहा था. लोगों ने तालियाँ बजाईं, कुछ लोग
व्यास पीठ पर आकर कुछ बोले. विक्रम और बेताल आगे चले.
उस दिन तो यह जोड़ी जहाँ भी
गई, ऐसा ही नज़ारा देखने को मिला. विक्रम से रहा न
गया, उसने आख़िर पूछ ही लिया, “बेताल,
ये लोग ऐसे जमा होकर इन्हीं महापुरुष को फूल मालाएँ क्यों पहना रहे
हैं? मुझे तो स्मरण नहीं है कि यह किसी भगवान का चित्र है.
कुछ बताओ तो.”
“तुमने सही पहचाना,
दोस्त! यह तस्वीर है एक प्रसिद्ध शिक्षक की, या
यूँ कहो कि भूतपूर्व राजनीतिज्ञ की जो कभी शिक्षक रह चुके थे. वे बड़े विद्वान,
दार्शनिक और सम्माननीय थे. उन्होंने अपने जन्मदिवस को शिक्षक-दिवस
के रूप में मनाने की परिपाटी अपने ही जीवन काल में डाल ली.
तभी से हर वर्ष इसी दिन
‘शिक्षक-दिवस’ मनाया जाता है.”
“मतलब,
होता क्या है इस दिन? शिक्षकों का सम्मान किया
जाता है? ‘गुरुर्ब्रह्मा ...’ कहकर
उनकी पूजा की जाती है?”
“ना,ना,ना! बस इन्हीं महापुरुष को हार-फूल पहनाए जाते
हैं. सभाओं का आयोजन होता है. शिक्षकों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए, शिक्षकों से ही ये कहा जाता है कि वे ऐसे बनें...वैसे बनें...ये करें...वो
करें...पाठशालाओं में इस दिन विद्यार्थी पूरी पाठशाला चलाते हैं...शिक्षकों को बस
देखना होता है कि काम कैसा चल रहा है.”
“राम-राम! ये तो जीते जी
ही उन्हें कोने में बिठा देने वाली बात हुई कि तुम्हारे बगैर ही हम सब काम चला
सकते हैं.”
“रुको,
राजा जी, मुझे पूरी बात तो सुनाने दो.”
“अच्छा कहो!”
“देश की राजधानी में
सर्वोत्तम शिक्षक को पुरस्कार दिया जाता है. अन्य अनेक स्थानों पर भी ऐसा ही किया
जाता है.”
“देखो बेताल,
एक ही शिक्षक प्रतिवर्ष तो पुरस्कार पाएगा नहीं.”
“ठीक कहा तुमने,
राजा जी, प्रति वर्ष अलग-अलग शिक्षकों को
पुरस्कार दिया जाता है.”
“यानी अगर इस वर्ष ‘अ’ सर्वोत्तम होने का पुरस्कार पाएगा, तो अगले वर्ष ‘ब’ और उससे अगले
वर्ष ‘क’. यानी किसी पाठशाला में यदि
दस अध्यापक हैं तो दस वर्षों में हरेक सर्वोत्तम कहलायेगा. फिर दुबारा सर्वोत्तम
बनने का सिलसिला अगले दस वर्षों तक जारी रहेगा. मगर यदि कहीं
दो, या मानो तीन ही अध्यापक हों, तो
हरेक बड़ी जल्दी सर्वोत्तम कहलायेगा, और यदि एक ही अध्यापक हो
तो? उसका सम्मान प्रतिवर्ष किया जाएगा. एक बार सर्वोत्तम
बनने के बाद क्या उसे कुछ अन्य सुविधाएँ मिलती हैं?”
“कहाँ की सुविधाएँ,
राजा जी, जहाँ सभी सर्वोत्तम हों वहाँ तू
भी रानी, मैं भी रानी, कौन
भरेगा पानी वाली कहावत ही चरितार्थ होगी न!”
“अच्छा,
यह तो बताओ कि इन सभाओं का आयोजन करता कौन है?”
“कौन करेगा?
जिसका ‘दिवस’ हो,
वही! शिक्षक ही आयोजन करते हैं, शिक्षक ही
श्रोता, शिक्षक ही वक्ता!”
“मुख्य अतिथि भी शिक्षक?”
“नहीं,
मुख्य अतिथि होता है कोई सरकारी अफ़सर या कोई राजनेता! फूलमाला उसे
पहनाई जाती है, शिक्षक बेचारे थके-मांदे, भूखे-प्यासे उसके इंतज़ार में घंटों बैठे रहते हैं.”
“तो फिर इसे शिक्षक-दिवस
क्यों कहते हो?”
“इसलिए कि जिन महापुरुष का
जन्म दिन मनाया जा रहा है, वे कभी शिक्षक रह
चुके थे. मगर, एक बात गौर करने लायक है, यदि वे राजनीति में अत्युच्च पद प्राप्त न करते तो क्या उनका जन्मदिन इस
भाँति मनाया जाता? मतलब यह, कि वास्तव
में तो सम्मान राजनीतिज्ञ का किया जाता है, कोई-न-कोई बहाना
ढूँढ़ लिया जाता है, बस!”
“अच्छा,
बेताल भाई, और कौन-कौन से ‘दिवस’ मनाए जाते हैं?”
“ ‘बाल-दिवस’ भी मनाया जाता है एक अन्य
राजनेता के जन्ममदिन के रूप में. बेचारे बच्चे कई-कई दिनों तक धूप में कसरत,
खेलकूद, नृत्य-नाटक आदि का आयोजन करते हैं,
जिससे बाल-दिवस पर उनका प्रदर्शन कर सकें.”
“इतनी धूम-धाम से मनाया जाता है बाल-दिवस?”
“मनाया क्यों नहीं जाएगा?
ये महापुरुष अपने वंश के लिए युग पुरुष ही तो थे, वे स्वर्णलता राजकुमारी के वंश के आदिपुरुष थे. तभी अब तक इस दिवस का गौरव
कायम है.”
“तो, शिक्षक-दिवस,
बाल-दिवस मानो अपने-अपने अस्तित्व का एहसास कराने वालों द्वारा मनाए
जाते हैं. मैंने सुना है कि महिला-दिवस भी मनाया जाता है.”
“हाँ, वहाँ
भी हर आयोजन महिलाओं द्वारा, महिलाओं के लिए ही किया जाता है.
और भी कुछ महत्वपूर्ण दिवस मनाए जाते हैं, जैसे सद्भावना-दिवस,
जब देश के सभी व्यक्ति शपथ लेते हैं, कि वे एक
दूसरे के साथ सौहार्द्र का व्यवहार करेंगे. शहीद-दिवस, स्वतन्त्रता-दिवस,
गणतन्त्र-दिवस आदि भी मनाए जाते हैं.”
“हूँ...तो तुमने महिलाओं के,
बच्चों के, शहीदों के नाम तो गिना दिए,
मगर क्या पुरुषों का कोई दिवस नहीं मनाया जाता?”
“भारतवर्ष में नहीं. हाँ,
एक ‘वेलेन्टाइन-डे’ मनाया
जाता है जब लोग अपने-अपने प्रिय पात्र को बधाइयाँ देते हैं.”
“बेताल, जहाँ
तक मैं समझ पाया हूँ, ये आयोजन उनका मनोबल बढ़ाने के लिए किए जाते
हैं जो कमज़ोर हैं, अपनी रक्षा स्वयम् नहीं कर सकते. वे ही अपने
अस्तित्व का ज्ञान समाज को करवाने के लिए समय-समय पर ऐसे उत्सव किया करते हैं. वर्ना,
घर-परिवार में तो जिसका जन्मदिन मनाया जाता है, उसका सम्मान घर के अन्य सदस्य करते हैं, आशीर्वाद,
भेंट इत्यादि भी दूसरे व्यक्ति ही देते हैं. यहाँ तो जिसका दिवस मनाया
जा रहा है, वही अपनी ‘निधि’ में धन का दान देने की विनती करता है. वास्तव में जिन्हें सम्मान दिया जाना
चाहिए, जो समाज के निर्माता हैं, मैं शिक्षकों
की बात कर रहा हूँ, जो देश की भावी पीढ़ी का निर्माण करते हैं; बच्चों के बारे में सोच रहा हूँ, जो देश के कर्णधार
हैं; महिलाओं के बारे में सोच रहा हूँ, जो शक्तिस्वरूपा है, जन्मदात्री है, माता है, उन्हें आपके इन थोथे सम्मानों की आवश्यकता नहीं
है. एक दिन नाममात्र को सम्मानित करने का दिखावा न करते हुए उनकी महत्ता और शक्ति को
पहचान कर उन्हें समाज में योग्य स्थान देना होगा. तभी देश का चरित्र एवम् शक्ति बढ़ेगी.
शिक्षकों को, बच्चों को और महिलाओं को ‘जियो हज़ारों साल’ कहने की ज़रूरत नहीं है. गुरू,
जो साक्षात् परब्रह्म है; नारी, जिसके निकट ही स्वर्ग का वास है; एवम् बच्चे,
जो साक्षात् ईश्वर का ही रूप हैं, उनका मखौल न
उड़ाया जाए. सिर्फ एक ‘दिवस’ उनकी आड़ में
औरों को सम्मानित करने के बदले उन्हें चिर सम्मान प्रदान किया जाना चाहिए.”
विक्रम आवेश में बोलता रहा,
बेताल उसे चुपचाप देखता रहा. आख़िरकार विक्रम ने ही कहा : “ये तो मेरे
मन के भाव थे, बेताल. पुराने ज़माने का हूँ न इसीलिए आदरणीय व्यक्तियों
की दशा देखकर आवेश में आ गया. तुम ही बताओ, क्या कभी इस देश में
गुरू एवम् माता को फिर से वैसा ही सम्मान प्राप्त हो पाएगा, जैसा
प्राचीन काल में होता था?”
“मालूम नहीं, विक्रम...”
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